“
कस
ली
है
कमर
अब
तो,
कुछ
करके
दिखाएँगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी ज़ुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे “
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी ज़ुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे “
আজ ভারত মায়ের আর এক সুযোগ্য সন্তান এর প্রয়ান দিবস। আজকের
দিনে (১৯এ ডিসেম্বর, ১৯২৭) উত্তরপ্রদেশের ফৈজাবাদে ফাঁসি হয় বিপ্লবী আসফাকুল্লা খানের। মহান বিপ্লবী রামপ্রসাদ বিসমাইল এর আজীবন
সুযোগ্য সহকারী ছিলেন, ছিলেন তার এ মতো একজন কবিও। তিনি ‘ওয়ার্সি’ ও ‘হসরত্’ ছদ্মনামে উর্দু ভাষায় কবিতা লিখতেন।ভারত মায়ের বন্ধন
ঘোচাতে একসাথে কাঁধে কাঁধ মিলিয়ে লড়াই করেছিলেন, অদ্ভুত ঐক্য ছিল আপামর ভারতবাসীর
সেইসময়, আমি হিন্দু- ও মুসলমান এই ভেদাভেদ ছিল না। আর আজ? চারিদিকে পারস্পরিক
বিদ্বেষ এর সুর, হিংসায় উন্মত্ত সারা দেশ। আজ মনে হয় আমরা পরাধীন ছিলাম ভালোছিলাম –
অন্তত সেইসময় দুর্নীতি, স্বজনপোষণ এত ভেদাভেদ তো ছিল না। কোথাও একটা সুন্দর শায়রি
পড়েছিলাম – আজ সেটাই উদ্ধৃত করে দিলাম ...
“ मस्जिद तो हुई
हासिल
हमको,
खाली ईमान गंवा बैठे ।
मंदिर को बचाया लढ-भीडकर,
खाली भगवान गंवा बैठे ।
धरती को हमने नाप लिया,
हम चांद सितारों तक पहुंचे ।
कुल कायनात को जीत लिया,
खाली इन्सान गंवा बैठे ।
मजहब के ठेकेदारों ने..
आज फिर हमे युं भडकाया ।
के काजी और पंडित जिन्दा थे,
हम अपनी जान गंवा बैठे ।“
खाली ईमान गंवा बैठे ।
मंदिर को बचाया लढ-भीडकर,
खाली भगवान गंवा बैठे ।
धरती को हमने नाप लिया,
हम चांद सितारों तक पहुंचे ।
कुल कायनात को जीत लिया,
खाली इन्सान गंवा बैठे ।
मजहब के ठेकेदारों ने..
आज फिर हमे युं भडकाया ।
के काजी और पंडित जिन्दा थे,
हम अपनी जान गंवा बैठे ।“
No comments:
Post a Comment